स्टे ऑर्डर क्या है? स्टे ऑर्डर कैसे मिलेगा – नियम, खर्चा, टाइम, कॉपी

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आपका कभी न्यायालय में कोई केस हुआ हो या आप वहां की जानकारी रखने में रुचि रखते हैं तो अवश्य ही आपने स्टे ऑर्डर का नाम कई बार सुना होगा। साथ ही जब कभी भी आप समाचार देखते होंगे या पढ़ते होंगे तो उसमे भी आपको (Stay order kya hota h) न्यायिक प्रक्रिया व उनके निर्णयों में स्टे ऑर्डर का नाम सुनाई दिया होगा। ऐसे में क्या आपके मन में भी यही प्रश्न उठ रहा हैं कि आखिरकार यह स्टे ऑर्डर होता क्या हैं और इसका क्या औचित्य हैं।

यदि आप स्टे ऑर्डर शब्द को लेकर आशंकित हैं और इसके बारे में विस्तार से जानने को इच्छुक हैं तो आज हम आपके साथ इसी विषय पर ही चर्चा करने वाले हैं। आज (Stay order kaise lagta hai) के इस लेख में आपको स्टे ऑर्डर के बारे में संपूर्ण जानकारी जानने को मिलेगी। साथ ही यदि आपको किसी विषय या मामले पर न्यायालय से स्टे ऑर्डर लेना हुआ तो उसके लिए आपको (Stay order kise kahate hain) किन नियमों के तहत आवेदन करना होगा, इसके बारे में भी जानने को मिलेगा। आइए जाने स्टे ऑर्डर के बारे में सब कुछ।

स्टे ऑर्डर क्या है? (Stay order kya hai)

सबसे पहले बात की जाए कि आखिरकार यह स्टे ऑर्डर होता क्या हैं। तो आप भारत की न्यायिक व्यवस्था से तो परिचित ही होंगे। तो आपको क्या लगता हैं कि देश में निर्णय लेने का अधिकार केवल न्यायालय के पास हैं? यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं क्योंकि न्यायालय केवल अपराध होने की स्थिति में निर्णय लेता हैं। अन्य स्थितियों में व देश को सही दिशा में आगे (Stay order kya hota hai) ले जाने के लिए भारत के राजनेता, अधिकारी व विभाग अपने अपने स्तर पर निर्णय लेते रहते हैं।

इसमें सभी तरह की कार्यवाही व निर्णय सम्मिलित होते हैं फिर चाहे वह किसी के भी द्वारा लिए गए हो। ऐसे में भारत की न्यायिक व्यवस्था के पास यह अधिकार हैं कि वह भारत में हो रही किसी भी कार्यवाही पर रोक लगा दे। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि भारत का न्यायालय किसी कार्यवाही पर रोक लगा देता हैं तो उसे स्टे ऑर्डर कहा जाता हैं। इसके तुरंत बाद उस पर कार्यवही रोकनी पड़ती हैं अन्यथा यह न्यायालय की अवमानना माना जाता हैं।

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स्टे ऑर्डर शब्द का अर्थ (Meaning of Stay order in Hindi)

स्टे ऑर्डर एक अंग्रेजी भाषा का शब्द हैं जिसका अर्थ अब हम जानेंगे। तो यह दो शब्दों के मेल से बना हुआ हैं जो हैं स्टे व ऑर्डर। इसमें स्टे शब्द का अर्थ होता हैं रोक और ऑर्डर का अर्थ होता हैं निर्णय। तो इस तरह से रोक वाले निर्णय को ही स्टे ऑर्डर कहा जाता हैं। अब यह तो आप ऊपर पढ़कर समझ ही गए होंगे कि यह रोक वाला निर्णय किस पर लग रहा हैं।

तो किसी काम या कार्यवाही पर जब न्यायालय के द्वारा रोक लगा दी जाती हैं और उसके लिए निर्णय पारित किया जाता हैं तो उसे ही सामान्य भाषा में स्टे ऑर्डर की संज्ञा दी जाती हैं।

स्टे ऑर्डर शब्द के अन्य नाम [Other names for the term stay order]

चूँकि स्टे ऑर्डर अंग्रेजी भाषा का एक शब्द हैं तो इसका हिंदी नाम भी हैं। वैसे तो हमारी न्यायिक व्यवस्था में अधिकतर काम या यूँ कहे कि आधिकारिक कार्य अंग्रेजी भाषा में ही होते हैं जो कि आज तक एक अपवाद हैं। फिर भी यदि हम स्टे ऑर्डर के हिंदी नाम की बात करें तो उसे दो तरह के नाम से जाना जाता हैं। इसमें जो पहले नाम चलन में हैं वह होता हैं स्थगन आदेश और दूसरे नाम हैं अस्थाई निषेधाज्ञा।

तो यदि आपको कही स्टे ऑर्डर का शब्द सुनने को मिले तो इसका अर्थ हुआ कि न्यायालय के द्वारा संबंधित मामले में स्थगन आदेश पारित किया गया हैं या फिर अस्थायी तौर पर वहां निषेधाज्ञा लागू हैं। इसका अर्थ हुआ कि उक्त मामले में हो रही कार्यवाही को रोकना पड़ेगा और तब तक उस पर कार्यवाही नही की जा सकेगी जब तक उस पर से न्यायालय के स्टे ऑर्डर हट नही जाता हैं।

स्टे ऑर्डर किस पर लगता है? [Who gets the stay order?]

आपने यह तो जान लिया कि स्टे ऑर्डर होता क्या हैं और इसे कौन पारित करता हैं लेकिन आपको यह भी जानना चाहिए कि न्यायालय आखिर किस किस मामले में स्टे ऑर्डर का आदेश पारित कर सकती हैं या फिर इके कौन कौन से प्रमुख क्षेत्र होते हैं। आज हम आपके साथ वही कुछ मामले रखेंगे जिन पर मुख्य रूप से कानून का स्टे ऑर्डर लग जाता हैं या लगाया जाता हैं। आइए जाने स्टे ऑर्डर किस किस पर लग सकता हैं।

  • यदि कही संपत्ति को लेकर विवाद हैं तो उस पर कुछ समय के लिए कार्यवही रोकने को कोर्ट से उस पर स्टे ऑर्डर लिया जा सकता हैं।
  • यदि पुलिस की गिरफ्तारी से बचना हैं और कुछ समय के लिए उनके द्वारा की जा रही कार्यवही पर रोक लगनी हैं तो कोर्ट से स्टे ऑर्डर लिया जा सकता हैं।
  • यदि प्रशासन ने कही पर कार्यवाही करने का आदेश पारित किया हुआ हैं तो उस पर भी स्टे ऑर्डर लिया जा सकता हैं।
  • अन्य किसी भी विधायिका या कार्य पालिका की कार्यवाही पर भी न्याय पालिका स्टे ऑर्डर जारी कर सकती हैं और हो रही कार्यवाही को कुछ समय के लिए रोक सकती हैं।
  • स्वयं न्याय पालिका भी अपने द्वारा जारी किये गए या अपने से निचली न्यायालय द्वारा जारी किये गए आदेश पर स्टे ऑर्डर लगा सकती हैं और उसे रोक सकती हैं।

इस तरह कोर्ट के पास किसी भी विधिक कार्यवाही को रोकने का संपूर्ण अधिकार होता हैं। वह भारत देश में हो रही किसी भी कार्यवाही जो कि कानूनी दायरे के अंदर आती हैं तो वह उसे रोक सकती हैं या फिर उस पर स्टे ऑर्डर लगा सकती हैं।

स्टे ऑर्डर कैसे लिया जा सकता है? (Stay order kaise le)

अब यदि आप कोर्ट में किसी मामले के लिए स्टे ऑर्डर लेना चाहते हैं तो आपको उसके लिए पहले एक वकील करना होगा। वकील करने के बाद आपको उसे संपूर्ण मामले को समझाना होगा और यह बताना होगा की आप किस मामले और किस तरह का स्टे ऑर्डर चाहते हैं। साथ ही यदि आप न्यायालय के समक्ष यह भी बता देंगे कि संबंधित मामले में स्टे ऑर्डर मिलने से आपका या अन्य किसी व्यक्ति का क्या लाभ हो सकता हैं और उससे कोर्ट को क्या लाभ होगा तो मामले की गंभीरता समझी जा सकती हैं।

कोर्ट से किसी मामले में स्टे ऑर्डर लेने के लिए आपको धारा 39 के नियम 1 व 2 के तहत आवेदन करना होगा। इसके बाद यदि कोर्ट को लगता हैं कि संबंधित मामले में (Stay order kaise lete hain) वह स्टे ऑर्डर दे सकती हैं या उसे स्टे ऑर्डर देना चाहिए तो अवश्य ही वह इस पर कार्यवाही करेगी और इस पर स्टे ऑर्डर लगा देगी। इस तरह आप किसी भी मामले में कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले सकते हैं और कार्यवाही पर कुछ समय के लिए प्रतिबन्ध लगा सकते हैं।

स्टे ऑर्डर के बाद क्या होता है? [What happens after a stay order?]

अब यदि कोर्ट के द्वारा किसी मामले में स्टे ऑर्डर पारित कर दिया जाता हैं तो इसका अर्थ हुआ कि तत्काल प्रभाव से उस पर हो रही कार्यवाही को रोक दिया जाए। यदि कार्यवाही जारी हैं तो उसी समय उस कार्यवाही को रोक दिया जाए। कहने क अर्थ यह हुआ कि जैसे ही पुलिस के पास कोर्ट के स्टे ऑर्डर की कॉपी पहुंचेगी तो पुलिस को उसी समय अपने द्वारा की जा रही कार्यवाही पर रोक लगानी पड़ेगी।

तो स्टे ऑर्डर का मतलब ही यही होता हैं कि यदि किसी जगह पर किसी भी तरह की कार्यवाही की जा रही हैं या वहां पर कार्यवाही हो सकती हैं तो उसे तुरंत प्रभाव से स्थगित किया जाता हैं। ऐसा नही करने पर कोर्ट के द्वारा संबंधित अधिकारी के ऊपर अवमानना का केस चल सकता हैं।

स्टे ऑर्डर कितने समय के लिए होता है? [How long is the stay order?]

अब आपको यह भी जानना होगा कि यदि कोर्ट किसी मामले में स्टे ऑर्डर जारी करती हैं तो वह कितने समय के लिए वैध होता हैं या फिर पुलिस को कब तक उसका पालन करना होता हैं। तो पहली बात तो यह कि यदि कोर्ट के द्वारा किसी मामले में स्टे ऑर्डर जारी किया जाता हैं तो वह उसके लिए एक समय निश्चित कर देती हैं जैसे कि 2 महीने या एक वर्ष या उससे कम या अधिक समय। कोर्ट के द्वारा एक निश्चित तिथि भी बताई जा सकती हैं कि उनका यह स्टे ऑर्डर का आदेश इस तिथि तक ही मान्य रहेगा। उसके बाद पुलिस अपनी कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होती हैं।

अब यदि कोर्ट अपना स्टे ऑर्डर देते समय कोई तारीख या तिथि नही बताती हैं तो इसका अर्थ होता हैं कि वह स्टे ऑर्डर का आदेश 6 माह तक ही मान्य रहेगा। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि किसी स्टे ऑर्डर के आदेश में कोर्ट के द्वारा कोई अवधि नही बताई जाती हैं तो ऐसी स्थिति में वह आदेश छह माह के लिए मान्य होता हैं। छह माह के बाद उस कार्यवाही पर स्टे ऑर्डर अपने आप हट जाता हैं और पुलिस को कार्यवाही करने का अधिकार मिल जाता हैं।

स्टे ऑर्डर ना मानने पर क्या होता है?

अब यदि आपको लगता हैं कि कोर्ट से आदेश पारित होने के बाद भी उस पर कार्यवाही जारी रहती हैं और स्टे ऑर्डर की आज्ञा का उल्लंघन किया जाता हैं तो उस पर क्या कुछ हो सकता हैं। तो यदि कोर्ट के द्वारा स्टे ऑर्डर का आदेश पारित किये जाने के बाद भी संबंधित विभाग या पुलिस के द्वारा उस पर कार्यवाही जारी रखी जाती हैं तो यह सीधे तौर पर न्यायालय की अवहेलना मानी जाती हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय द्वारा संबंधित अधिकारी या पुलिस के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति दी जाती हैं।

उसके बाद उस व्यक्ति को अपने पद से निष्कासित किया जा सकता हैं, उसे कुछ समय के लिए सस्पेंड किया जा सकता हैं, 6 माह की सजा हो सकती हैं या आर्थिक जुर्माना लगाया जा सकता हैं। यह निर्णय मामले की गंभीरता को देखते हुए ही लिया जा सकता हैं।

स्टे ऑर्डर क्या है – Related FAQs

प्रश्न: जमीन पर स्टे लगाने से क्या होता है?

उत्तर: जमीन पर स्टे लगाने से उस जमीन पर जो भी पुलिस या प्रशासनिक कार्यवाही हो रही थी, वह पूर्ण रूप से रोक दी जाती है।

प्रश्न: कोर्ट में स्टे ऑर्डर क्या है?

उत्तर: कोर्ट में स्टे ऑर्डर का मतलब होता हैं न्यायालय के द्वारा किसी भी विधिक या प्रशासनिक या पुलिसिया कार्यवाही पर कुछ समय के लिए स्थगन आदेश पारित करना।

प्रश्न: स्टे आर्डर कितने दिन में मिल जाता है?

उत्तर: यह पूर्ण रूप से मामले की गंभीरता पर निर्भर करता हैं कि उस पर स्टे ऑर्डर कितने दिनों में मिल सकता है।

प्रश्न: जमीन पर स्टे कैसे लगाएं?

उत्तर: जमीन पर स्टे लगाने के लिए कोर्ट में धारा 39 के नियम 1 व 2 के तहत केस फाइल करें।

तो इस तरह से आज आपने जान लिया कि स्टे ऑर्डर क्या होता है और इसके लिए कोर्ट किस किसको आदेश जारी कर सकता हैं। ऐसे में यदि आप किसी मामले या कार्यवाही में कोर्ट से स्टे ऑर्डर पारित करवाना चाहते हैं तो इसके लिए पूरी तैयारी करके ही कोर्ट में जाएंगे तो बेहतर रहेगा अन्यथा कोर्ट के द्वारा आपको डांट भी सुनने को मिल सकती हैं।